तस्लीमा नसरीन...... एक जाना पहचाना नाम है.... शायद ही कोई व्यक्ति होगा जो इनके नाम से परिचित नहीं होगा......नसरीन का जन्म २५ अगस्त १९६२ को एक मुस्लिम परिवार में हुआ था....प्रसिद्द लेखिका नसरीन ने अपने जीवन की शुरुवात चिकित्सा के पेशे से की......१९८४ में चिकित्सा की पड़ी पूरी करने के बाद उन्होंने ८ वर्ष तक बंगलादेश के अस्पताल में काम किया .... सामाजिक गतिविधियों से जुड़े होने के बाद भी उन्होंने अपने को साहित्यिक गतिविधियों से दूर नहीं किया...... मात्र १५ वर्ष की आयु में कविता लिखकर अपनी लेखनकला की ओर सभी का ध्यान खींचा..... तस्लीमा की पहली पुस्तक १९८६ में प्रकाशित हुई.....१९८९ में वह अपनी दूसरी पुस्तक को प्रकाशित करवा पाने में सफल रही.... इसके बाद तस्लीमा ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा .......
इस दूसरी पुस्तक को लिखने के बाद उनको दैनिक, साप्ताहिक समाचार पत्रों के संपादको की ओर से नियमित कॉलम लिखने के आमंत्रण आने लगे.... इस अवधि में "सैंट ज्योति" पाक्षिक पत्रिका का संपादन भी उनके द्वारा किया गया...तस्लीमा हमेशा बंगाली भाषा में लिखती रही है..... नसरीन को धर्म, संस्कृति, परम्पराव की आलोचना करने में कोई भय नहीं रखता ..... इसी कारन उनकी ६ मुख्य पुस्तके प्रतिबंधित श्रेणी में आती है जो क्रमश "लज्जा" (१९९३), अमर मेबले( १९९९), उताल हवा(२००२), को(२००३), द्विखंडितो( २००३), सी सब अंधकार (२००४) शामिल है......
तस्लीमा की पुस्तकों पर उनके गृह देश बंगलादेश में भी विरोध के स्वर मुखरित होते रहे है.... जहाँ शेख हसीना ने इन पुस्तकों को अश्लील करार दिया है वही भारत की पश्चिम बंगाल की वामपंथी सरकार ने
मुस्लिम कौम की भर्त्सना करने के चलते इन पुस्तकों पर प्रतिबन्ध लगाया..... १९९२ में तस्लीमा बंगलादेश का प्रतिष्टित साहित्यिक अवार्ड "आनंदा " पाने में सफल रही.... निडर होकर धर्म के विरोध में लिखने के कारन "सोल्जर ऑफ़ इस्लामी ओर्गनाइजेशन " ने इनके खिलाफ मौत का फ़तवा जारी कर दिया.... जिसके बाद से कभी उन्होंने जनता के सामने आना पसंद नहीं किया........वह की सरकार ने उनके खिलाफ उग्र प्रदर्शनों से बचाव हेतु उनका पास पोर्ट जब्त कर लिया ओर देश से निर्वासित होने का फरमान जारी करदिया .......
२००४ में उनके खिलाफ विरोध जताने के एक मुद्दे के तौर पर यह कहा गया अगर किसी ने उनके मुह कला कर दिया तो उसको अवार्ड दिया जायेगा......बंगलादेश के धार्मिक नेता सैयद नूर रहमान तो तस्लीमा के लेखन से इतना आहत हुए उन्होंने इनको आतंकवादी संगठन जीबी का जासूस तक करार दे डाला......२००५ में अमेरिका पर लिखी गई एक कविता पर फिर से उन्हें मुस्लिम समाज पर आपत्तिजनक टिप्पणिया करने के कारन खासी फजीहतें झेलनी पड़ी.......
मार्च २००५ में उत्तर प्रदेश के कुछ मुस्लिम संगठनो ने इनका सर कलम करने के लिये ६ लाख के इनाम की घोषणा की.....इसके बाद ९ अगस्त २००७ को हैदराबाद प्रेस क्लब में उनके तेलगु संस्करण शोध के विमोचन के मौके पर "मुतेह्दा मजलिस ऐ अमल" के १०० लोगो ने ३ विधान सबहहा सदस्यों के साथ इन पर हमला बोल दिया.......इस घटना पर उन्होंने अपनी प्रतिक्रिया देते हुए कहा हम इस्लाम के खिलाफ लिखने ओर बोलने वाले का विरोध करते रहेंगे.... सितम्बर २००७ में तस्लीमा पर कुछ कट्टरपंथियों ने हमला बोल दिया ... भारत में इसी दौरान "अल इंडिया मईनोरिटी" फोरम ने इनके भारत रहने पर सवाल उठायेओर इन्हें भारत से निकलने की मांग की.... स्थिति को बिगड़ता हुआ देख पश्चिम बंगाल की तत्कालीन वामपंथी सर्कार ने इनकी हिफाजत के लिये पुलिस नियुक्त की......परन्तु स्थिति नहीं संभल पायी......
२१ नवम्बर २००७ को इन्हें जयपुर ले जाया गया और रातो रात दिल्ली लाया गया.....३० नवम्बर २००७ को कट्टरपंथियों के विरोध को शांत करने के लिये तस्लीमा अपनी विवादित पुस्तक "द्विखंडितो" से ३ पन्ने हटाने को तैयार हो गई....इसके बाद तस्लीमा को उम्मीद थी तमाम विवाद उनका पीछा छोड़ देंगे लेकिन ऐसा नहीं हुआ.... ९ जनवरी २००७ को फ्रांस सरकार ने उन्हें" सियोमन दी वियोवर" सम्मान महिला अधिकारों की लड़ाई लड़ने के लिये दिया....कुछ साल पहले तक भारत सरकार ने उन्हें जयपुर में एक गुप्त स्थान में रखा जहाँ पर उन्हें किसी से मिलने की अनुमति नहीं दी गई......
भले ही नसरीन को भारत छोड़ते हुए लम्बा समय हो गया हो लेकिन आज भी वह कोलकाता को अपना घर मानती है.....तसलीमा तो भारत से चली गई लेकिन उनके जाने के बाद भारत की धर्म निरपेक्ष छवि को करार तमाचा लगा अहि.....हमारे साथ सबसे बड़ी दिक्कत यही है हम इतिहास की घटनाओ से सबक नहीं सीखते .... "सैटेनिक वर्सेज" जिस दौर में रुश्दी ने लिखा तो पूरे इस्लाम जगत में हलचल मच गई ऐसे समय में ब्रिटेन ने रुश्दी को व्यापक सुरक्षा मुहैया करवाईलेकिन एक हम है जो अतिथि देवो भवः का दंभ भरते है ओर किसी शरानाठी को ठीक से सुरक्षा भी नहीं दे सकते.....
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