रहमान के "गोल्डन ग्लोब" जीतने के बाद विश्व भर में "स्लमडॉग मिलेनियर" खासी सुर्खियों में आ गई है..... एक साथ ४ गोल्डन ग्लोब जीतना किसी भी फ़िल्म निर्माता के लिए एक बड़ी उपलब्धि है...इसको सही से साकार किया है " डैनी बोयल " ने... डैनी एक विदेशी फ़िल्म निर्देशक है.... उनकी स्लम डॉग अब भारत में भी रिलीज़ हो गई है... रहमान के गोल्डन ग्लोब जीतने के बाद से ही हमारे देश में जश्न का माहौल बन गया था ...यही कारण था वह भारत में फ़िल्म के रिलीज़ होने की प्रतीक्षा करते रहे... यह उत्साह उस समय दुगना हो गया जब स्लम डॉग को ऑस्कर के लिए १० नामांकन मिल गए...मीडिया रहमान का गुणगान करने में लग गया .... डैनी का भी देश विदेशों में जोर शोर से नाम गूजा.... अभी डैनी की सफलता में एक अध्याय उस समय जुड़ गया जब अमेरिका में एक और अवार्ड बीते दिनों उनकी झोली में चले गया...
जहाँ तक फ़िल्म की कहानी की बात है तो इस फ़िल्म का कथानक "विकास स्वरूप " के भारतीय उपन्यास "क्यू एंड ए" पर आधारित है विकास ने २००३ में यह उपन्यास लिखा था जिसका ३५ भाषाओ में अनुवाद हो चुका है इस उपन्यास ने विकास को बहुत चर्चित बना दिया है विकास भारतीय विदेश सेवा के अधिकारी है जिनकी इस कृति को अफ्रीका में " बोआयाकी " सम्मान से भी नवाजा जा चुका है... अब स्लम डॉग की धूम के बाद उनके इस उपन्यास की बिक्री मार्केट में तेजी से बढ गई है स्लम डॉग सच्चे भारत की तस्वीर को बयां करती है लेकिन भारत के एक बड़े वर्ग को चमचमाते भारत की यह बुलंद तस्वीर रास नही आ रही है इस कारण से यह फ़िल्म विवादों में घिरती जा रही हैकुछ लोगो का मानना है कि इस फ़िल्म में भारत की गरीबी ओर झोपडियो का जीवन मसालेदार अंदाज में फिल्माया है जिस कारण पश्चिम में इसके चाहने वालो की संख्या बढ रही है
वैसे तो यह फ़िल्म विकास के उपन्यास पर आधारित है लेकिन इसकी कहानी उससे हूबहू मेल नही खाती विकास के उपन्यास का नायक जहाँ " राम थॉमस है वही डैनी का नायक "जमाल" है इसी तरह से राम की प्रेमिका उपन्यास में जहाँ नीता है , फ़िल्म में यह "लतिका " है उपन्यास की कहानी कुछ और ही बयां करती है उसमे दिखाया गया है किस प्रकार से धारावी में पला राम नाम का युवक शो शुरू होने के कुछ हफ्ते पहले ही एक अरब की मोटी रकम जीत जाता है लेकिन यहाँ पर एक नई समस्या शो के आयोजकों के सामने आजाती है जब उनके पास राम को देने के लिए रकम नही होती हैअतः वह राम को जालसाज साबित करने में लग जाते है इस दरमियान एक महिला वकील उसकी मदद करने को आगे आती है यह सब फ़िल्म में नही है जो भी हो इस फ़िल्म को देखने के बाद बुलंद भारत की असली तस्वीर देखीजा सकती है आज भी भारत की एक बड़ी आबादी स्लम में रहती है उनका गुजर बसर किस तरह से होता है यह सब हम इस फ़िल्म में देख सकते है गरीबी को लेकर चाहे कुछ भी कहा जा रहा हो लेकिन यह भारत की एक सच्चाई है हम इसको नकार नही सकते आज भी देश की बड़ी आबादी भूख और बेगारी से जूझ रही है उसे दो जून की रोटी भी सही से नसीब नही होती.... इसको पाने के लिए हाड मांस एक करना पड़ता है
फ़िल्म की कहानी "जमाल " और " सलीम" नमक दो युवको के इर्द गिर्द घूमती है स्लम डॉग दोनों की बचपन से जवानी तक के सफर की असली हकीकत को बयां करती हैफ़िल्म में दिखाया गया है एक अदना सा दिखने वाला युवक "जमाल" किस तरह से २ करोड़ जीत जाता हैदोनों के बचपन की दास्ताँ दर्द भरी है बचपन में दंगो की आग में इनकी माँ का कत्ल हो गया जिसके चलते अलग राह पकड़ने को मजबूर होना पड़ा दंगो के बाद दोनों युवक अंडरवर्ल्ड के शिकंजे में फस जाते है जिसमे उनकी सखी लतिका भी शामिलहो जाती है दोनों इसके चंगुल से छूट जाते है लेकिन लतिका वही की वही फस जाती है देश में बच्चो के अपहरण करने वालो का गिरोह किस कदर सक्रिय है यह फ़िल्म में दिखाया गया है वह बच्चो से अपने मुताबिक काम कराने से कोई गुरेज नही करता वहां से भागने के बाद जमाल की राह तो अलग हो जाती है लेकिन सलीम फिर से गिरोह वालो के चंगुल में फस जाता है जहाँ पर लतिका भी उसके साथ है बाद में जमाल केबीसी के शो में भाग लेता है जहाँ पर सभी सवालों के जवाब देकर वह "मिलेनियर " बन जाता है लेकिन लोग इस बात को नही पचा पाते की कैसे स्लम से आने वाला एक युवक सही जवाब दे देता है ? लेकिन "जमाल" अपने जीवन के अनुभवों के आधार पर सवालो के जवाब दे देता है अन्तिम सवाल पूछने से पहले पुलिस उसको प्रताडित करने से बाज नही आती लेकिन जमाल का आत्मविश्वास देखते ही बनता है उसकी माने तो "मुझे जवाब आता है" पुलिस उसको पकड़कर इस पहेली का हल खोजने की कोशिस करती है लेकिन उसको सफलता नही मिल पाती "जमाल" के भाग्य में करोड़पति बनना लिखा होता है वह बनकर रहता है
जहाँ फ़िल्म में छोटे जमाल की भूमिका में आयुस उतरे है वही देव पटेल ने बड़े जमाल की भूमिका निभाई है छोटे जमाल के द्वारा किया गया एक शोट ध्यान खीचता है जिसमे जमाल अपने प्रिय अभिनेता " बिग बी " के दर्शनों को पाने के लिए इस कदर बेताब रहता है की वह "गटर" में छलांग लगाकर भीड़ में अपने अंकल के ऑटो ग्राप के लिए हेलीकाप्टर के पास दोड़ता है इरफान खान, अनिल कपूर, फ्रीदा पिंटो का अभिनय भी फ़िल्म में लाजावाब है गुलजार के गाने झूमने को मजबूर कर देते है साथ ही अपने "रहमान " का तो क्या कहना .... जय हो जय हो .... हाथी घोड़ा पालकी जय बोलो रहमान की .....रहमान के संगीत की प्रशंसा में शब्द नही है .... इस बार ऑस्कर पाने की उनसे आशाए है सभी को ... अब २२ फरवरी का इंतजार है .... दिल थामकर बैठिये... सब्र का फल मीठा होता है .....अगर उनको यह मिल जात है तो वह पहले भारतीय होंगे जिसने किसी विदेशी की फ़िल्म में काम कर इसको पाया १० नामांकनों पर सबकी नजरें लगी है भारत में जो लोग स्लम डॉग की आलोचना कर रहे है उनको यह सोचना चाहिए सच्चाई से आप अपने को अलग नही कर सकते ... असली हिंदुस्तान फुटपाथ पर आबाद है सबसे दुःख की बात तो यह है स्लम डॉग भारत का उपन्यास है और इस पर फ़िल्म विदेशी बना रहा है एक सवाल जो हमको बार बार कचोट रहा है वह यह है हमारे " होलीवूड " वाले कब तक "प्यार के फंडो" पर बन रही फिल्मो से इतर सोचना शुरू करेंगे ? इस लीक से हटकर सोचने का माद्दा हमारे यहाँ ले देकर एक व्यक्ति ने निभाया है उसका नाम सत्यजीत ... सत्यजीत ने इस नब्ज को अपनी फिल्मो में सही से पकड़ा लेकिन इसके चलते उनको भी आलोचना का शिकार होना पड़ा था नरगिस के द्वारा पहले भी सत्य जीत राय की फिल्मो की आलोचना की जाती रही है उनका मानना था भारत की गरीबी को सत्य जीत विदेशों में बेच कर आते .... खैर जो भी हो हाल के कुछ वर्षो में भारत का नाम ऊँचा हुआ है॥ अपने "अरविन्द ओडीगा " व्हाइट टायगर " पर पुरस्कार जीतकर भारत का झंडा बुलंद कर चुके ... अब बारी विकास के उपन्यास की है .... क्या हुआ ऑस्कर अगर स्लम डॉग को ही मिले उसकी कहानी तो स्वरूप की ही .......
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