Sunday, September 11, 2011

घट गया डाकिये के थैले का वजन ............

फूल तुम्हे भेजा है ख़त में .... मैंने ख़त महबूब के नाम लिखा ... चिट्टी का जिक्र आते ही दिमाग में उमड़ घुमड़कर यह गाना आने लगता है.... एक जमाना था जब ये गाने हर व्यक्ति की जुबा पर होते थे लेकिन आज यह सिलसिला थम सा गया है..... आज हर कोई" मुन्नी", "शीला "और "जलेबी बाई" की बात करता है ...

जब से संचार क्रांति का बाजा बजा है तब से डाक विभाग के थैलों का वजन घट गया है....
पिछले दिनों वर्धा के डाकघर में पोस्ट कार्ड लेने पंहुचा तो वहां काम करने वाली एक महिला से मैंने पोस्ट कार्ड देने की मांग की..... इस पर वह मेरा मुह देखती रही और हसने लगी......उसने कहा आज के समय में पोस्ट कार्ड का कुछ महत्व नहीं रह गया है ..... शायद वह ये भूल गई आज़ादी से पहले और आज़ादी से बाद तक इस पोस्टकार्ड ने अपनी यात्रा पूरी की और सम्पर्क एक दूसरे से कायम रखा ....

मोबाइल और इन्टरनेट के युग में लोग आज पत्र लिखना आलस समझने लगे है.....पिछले दिनों महाराष्ट्र में एक दैनिक समाचार पत्र के संपादक ने भी मुझसे मुलाकात में यही कहा ... वह बोले आज संपादक के नाम पत्र अखबारों में कोई नहीं लिखना चाहता ...... एक दौर था जब ग्रामीण इलाको में एक दूसरे को पत्रों के माध्यम से सन्देश पहुचाये जाते थे लेकिन जैसे जैसे तकनीक का विकास होता गया वैसे ही मनुष्य के तौर तरीको में बदलाव आता गया.....

मोबाइल के उपयोग ने आज हर काम को आसान बना दिया है ....लोग सरल मोबाइल संदेशो के माध्यम से अपनी भावनाओ का जहाँ इजहार कर रहे है वही घंटो बतियाते हुए एक दूसरे का हाल चाल पूछ लेते है.....अभी अधिक समय नहीं बीता जब एक दूसरे की आशल कुशल जानने का माध्यम यही पत्र हुआ करते थे ....डाकिये के डाक लाने की सभी प्रतीक्षा किया करते थे ...अपनों के पत्र अंतर्देशी में या पोस्टकार्ड पर आते थे.....पत्र में ही सवाल होते थे उसी में जवाब भी दे दिए जाते थे.....

हँसता मुस्कुराता डाकिया जब मेरे घर पहुचता था तो माँ की ख़ुशी का ठिकाना नहीं होता था.... वह मेरी चिट्टियो को सुरक्षित रख दिया करती थी.... मैंने पहला पत्र अपनी अनीता दीदी को लिखा था ....उस समय ५ वी क्लास में पड़ता था .... उसी दौरांन दीदी की शादी भी हुई थी ....शादी के बाद वो मसूरी चली गई लेकिन पत्र के माध्यम से मै उनको अपने पास ही पाता था..... उस दौर के पत्रों की खासियत यह थी लोग उन पत्रों को लम्बे समय तक सहेजकर रखते थे .... लेकिन अब थ्री जी का जमाना है... मोबाइल में फैस बुक के बिना काम नहीं चलता ... फेसबुक तो आज कनेक्ट रहने का जरिया नहीं बल्कि दरिया बन गया है .... लोग अपने मोबाइल में रात दिन मेसेज मेसेज खेलने में लगे रहते है.....आज मोबाइल की पहुँच सर्वसुलभ होने के चलते तकनीकी विकास के दौर में चिठ्ठी कही गुम सी हो गई है ....

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